मेरे अध्यापक

कैसे कहूं दिल की बात,बयां करना भी मुश्किल हो गया क्योकि मुझे कोई समझता ही नही है।

       आँसुओ की धारा में बहते चले गए।

तनिक शाम हुई और हम सपनो में खो गए ।सपने इतने मीठे की हम उसमे बहते चले गए।सपने में लगा कि अध्यापक हमे पढ़ा रहे हैं और पढ़ते-पढ़ते नींद आ गई।जैसे ही अध्यापक ने हमे पढ़ाना शुरू किया हमे उतनी ही गहरी नींद में सो गए।
जैसे ही प्रशं ख़त्म हुआ और अध्यापक ने उसी प्रशं के बारे में पूछना शुरू कर दिया। सब से एक-एक करके पूछा तो किसी ने उत्तर दिया तो किसी ने नही भी दिया क्योकि वो सब भी मेरी ही नैया में सवार थे।
जैसे ही बारी आई तो अध्यापक ने बहुत ही ऊँचे स्वर में कहा कि चलो आप बताओ,जब मेरी आँखें ही खुली तो अध्यापक ने फिर दोबारा कहा तो मेरी सहपाठी ने मुझे जगा दिया और कहा कि अब तेरी बारी है,तो मैने कहा कि किस की बारी तो अध्यापक ने हमसे कहा कि ये प्रशं कहा से और कैसे आया ।मुझे इस प्रशं के बारे में कुछ नही पता था,क्योकि जिस समय अध्यापक पढ़ा रहे थे उस समय हम सो रहे थे।जैसे ही अध्यापक ने फिर से कहा -इतने में मम्मी ने कहा उठ जा कॉलेज का समय हो गया है।
फिर जल्दी से उठ कर देखा तो ऐसा कुछ नही था जैसा मैने सपने में देखा। फिर वही बात याद करके बड़ी हँसी आई।सपने के डर के मारे जल्दी से पुस्तक खोली और वही पढ़ना शुरू किया  जो अध्यापक हमें कक्षा में पढ़ा रहे थे।
जैसे ही कॉलेज जाने के लिए बस का समय हुआ तो कॉलेज के लिए निकल गए। कॉलेज जाकर पता लगा कि आज हमारे अध्यापक अवकाश पर है।

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